होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को न जाने

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आज 27 दिसंबर, बहुत लोगों के लिए आम सा दिन है…मगर जो शख्स शायरी से ताल्लुक़ रखते हैं उनके लिए आज का दिन बेहद खास है। आज है भारत में जन्मे सबसे मक़बूल और महान शायर, मिर्ज़ा ग़ालिब की यौम-ए-पैदाइश! ग़ालिब का जन्म 1797 में आगरा में हुआ, बचपन में ही सर से बाप का साया उठ जाने के बाद दिल्ली जाना हुआ, जहाँ इनकी ज़िन्दगी का एक बड़ा दौर गुज़रा। शायरी का हुनर ख़ुदा से माँग कर आये थे, सो 11 की उम्र से ही ग़ज़लें कहना शुरू कर दीं।

निस्बत

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हमें कब ये आरज़ू थी तेरी दास्ताँ में आते किसी एक सफ़हे पर हम दोनों के नाम आते नहीं थी हमारी ज़िद ये तेरी महफ़िलों में आयें बस इतना ही था काफ़ी दुश्मन न हम कहलाते मेरी सुबह के उजाले, मेरे शब का चैन ले कर तेरी याद चाहती थी, मुझे फिर से कैद करना क़ैदी रहे बहुत दिन, तेरी याद के कफ़स में जो निकल के आ गए हैं, नई लग रही है दुनिया

Meer

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mere rone ki haqeeqat jisme thi ek muddat tak wo kagaz nam raha ― Meer